काम है, मगर चैन नहीं हैं।  कोई ख़ास कारण नहीं।  मगर नहीं है, तो नहीं है।  ना दो पल बैठ के किसी से बात करने की फुर्सत ,ना कभी रुक कर कहाँ जा रहे हैं  का इल्म।  बस उठो तो ऑफिस जाओ, ऑफिस नहीं तो कोई जिम्मेदारी निभाओ।  फिर किसी को फ़ोन , किसी को मैसेज, कोई ईमेल का जवाब, कोई ब्लॉग लिखना। कोई बिल भरना तो कहीं जाने की टिकट कराना। यही काम करते करते रात हो जाना फिर अगले दिन का सोच के जैसे-तैसे सो जाना। 

कभी कभी कुछ रिश्तेदारी और दोस्ती का फ़र्ज़ निभाने इधर-उधर जाना।  कभी ये कभी वो।  एक काम ख़त्म  हुआ नहीं की दुसरे को ख़त्म  करने की चिंता होने लगती है। फिल्म देखना, घूमना फिरना भी आज कल कार्य भर लगने लगा है, जिसे निभा कर आगे बढ़ा जाए। 

पैसा पहले से ज्यादा है, मगर समय पहले से कम।  दोस्त पहले से ज्यादा हैं, मगर दोस्ती पहले से कम। और ऐसा नहीं है की काम में मैं नहीं लगता। मुझे शिकायत नहीं  किसी काम से। बस सुकून नहीं मिलता तो कोई काम करने में उतना मजा भी नहीं आता। 

काश कुछ ऐसा होता बटन मेरे पास।  उसे दबाता और सब कुछ स्थिर हो जाता।  सब करता मैं मगर अपनी गति से। कुछ चैन से, कुछ आराम से। 

लिखना तो मैं और चाहता हूँ, मगर नींद बहुत है आँखों में। और ना जाने क्यों ये ब्लॉग लिख कर ख़त्म करने की जल्दी।  फिर क्या फायदा ऐसे लिखने का जिसे लिखने पर चैन ना मिले। 

शुभ रात्रि। कल फिर मिलते हैं एक नए ब्लॉग के साथ।  फिलहाल  चैन से सो जाइये।