सोच रहा हूँ... एक गर्लफ्रेंड बना लूं...
सोच रहा हूँ बहुत दिनों से ,
एक गर्लफ्रेंड बना लूं .
वाट पहले से ही लगी पड़ी है ,
थोड़ी और लगवा लूं ।
पैसे खर्च करने पड़ेंगे धो-धो के,
ये तो बहुत हद तक पता है .
मगर कुछ पाने के लिए ,
बहुत कुछ खोना भी तो पड़ता है ।
दिन रात फ़ोन मेरा कुछ इस तरह चिल्लाएगा ,
के खुद ही के फ़ोन से डर लगने लग जाएगा.
उसकी चांय चांय काँय काँय से ,
जो बिल* अभी देश के विकास की तरह मद्ध्म है
वही बोल्ट** की स्पीड से मैराथन दौड़ लगाएगा .
लेकिन ये भी है , वो दिमाग चाटेगी ,
तो भेजा रिफ्रेश हो जाएगा . ..
जब उसी की सुनने से फुर्सत ना मिलेगी ,
तो कोई और क्या सुनाएगा !
टेंशन जिंदगी में पहले से बहुत हैं ,
उसके आ जाने से और बढ़ ही जायेंगी.
लेकिन कम से कम इस बोरिंग जिंदगी में
वो कुछ डिसट्रेक्शन तो लाएगी ।
“सही है भाई , दोस्ती सही तूने निभाली.
साले! हम घास छीलते हैं तो भी तुझे बता कर ,
और तूने बिना बताये , बंदी पटा ली ,
चल कोई नहीं ये बता , अब पार्टी देगा कहाँ पर ,
और कमीने हमें ’भाभी’ से कब मिलवाएगा ?”
कुछ इस तरह दोस्तों में अपना भी रौब बढ़ जाएगा ।
तो अब सोच ही लिया है ,
एक गर्लफ्रेंड बना ही ली जाए .
अगर खुदखुशी करनी ही है ,
तो खुद ही की ख़ुशी से क्यों ना की जाए ?
~ रबी
*बिल : फोन का बिल, ना की पार्लियामेंट वाला बिल
**बोल्ट : उसेन बोल्ट